Tuesday 7 August 2012


सत्ता के भूखों सुन लो, भूखी जनता की चीत्कार
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

प्रजातंत्र बेचारी की ये साड़ी जो तुम खिंच रहे हो.
कितना खून निचोड़ोगे और देश के निचुड़े गुर्दे भींच रहे हो.
सुख चुके आँखों के आंसू , बहते थे जो बन के धार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

राजनीती के चौपड़ पे तुम ये जो दाँव आपस में खेल रहे हो,
क्या बिगाड़ा हमने जो तुम, बारी बारी पेल रहे हो?
आरोपों प्रत्यारोपों का जो कर रहे हो वार पे वार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

सुख चूका आँखों का पानी, गंगा जमुना के औलादों के,
नंग धडंग तांडव कर रहे , अब ये वंशज हैं जल्लादों के
गोरे काले धन के पीछे, क्यों छीन रहे सुखी रोटी अचार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार

हम त्रस्त हैं, तुम भ्रष्ट हो, हम पस्त हैं, तुम मस्त हो,
हम लुट गए, तुम लूट गए , क्यों कोई तुमको कष्ट हो?
बस जान लो ज़ालिम बस बहुत हुआ ये अत्याचार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार...

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