Thursday 16 August 2012

उफ्फ! यह गर्मी, और यह धूप
न दिखे हरी घास का कोई तिनका
पंछी ने भी आमबर से मुह मोड़ लिया
न गूँजे मधूर संगीत, न दिखती तितलिय

उठे जब सुबहा तो
वो सूरज के पहेली किरण
शीतल शीतल हवाए
मधाम उज्यले को चीरती आई

वोही सूरज के किरण ए
जान लेने को आती है
सुबहा शाम जो प्यास बुझाए
गर्मी के दुपहरी में
बूँद बूँद को तरसती है

पीले पड़े पेधो के पत्ते
अब तो आखरी भी झढ़ राहा है
नही हरी शाखाओ की उमीद
कतरा कतरा भूमि फॅट रही ह

कही कोई किसान दिखता है
मज़दूरी और सिर्फ़ पसीना
जलती गर्मी में लहराते
और खून से सिचे गये वो
खेत नज़र आते है

तरसते है पानी नही
बंजर गाओं नज़र आते है
महेलो में बैठे है वो सेठ
ग़रीब के अस्क पीते नज़र आते है
घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो
ज़ोर का बहाव हो,
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध, संधि, क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।

तीन-चार फूल है,
आस-पास धूल है,
बाँस है -बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूँक दे, चकोर दे,
कब्र पर मज़ार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य-प्राण दान है।

झूम-झूम बदलियाँ
चूम-चूम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत-हार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

Tuesday 14 August 2012

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Tuesday 7 August 2012


सत्ता के भूखों सुन लो, भूखी जनता की चीत्कार
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

प्रजातंत्र बेचारी की ये साड़ी जो तुम खिंच रहे हो.
कितना खून निचोड़ोगे और देश के निचुड़े गुर्दे भींच रहे हो.
सुख चुके आँखों के आंसू , बहते थे जो बन के धार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

राजनीती के चौपड़ पे तुम ये जो दाँव आपस में खेल रहे हो,
क्या बिगाड़ा हमने जो तुम, बारी बारी पेल रहे हो?
आरोपों प्रत्यारोपों का जो कर रहे हो वार पे वार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार .

सुख चूका आँखों का पानी, गंगा जमुना के औलादों के,
नंग धडंग तांडव कर रहे , अब ये वंशज हैं जल्लादों के
गोरे काले धन के पीछे, क्यों छीन रहे सुखी रोटी अचार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार

हम त्रस्त हैं, तुम भ्रष्ट हो, हम पस्त हैं, तुम मस्त हो,
हम लुट गए, तुम लूट गए , क्यों कोई तुमको कष्ट हो?
बस जान लो ज़ालिम बस बहुत हुआ ये अत्याचार,
हमारा मुद्दा रोटी है, तुम्हारा मुद्दा भ्रष्टाचार...

Thursday 2 August 2012

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Tuesday 31 July 2012


राजनितिक शाषन
राजनितिक का यह है देश,
समझो तुम गुलाम इसे।
पहले थी अंग्रेजी शाषन ,
अब है राजनितिक शाषन
राजनितिक का यह है देश,
समझो तुम गुलाम इसे।

कुछ नेते अच्छे हुए ,
कुछ का तो जवाब नहीं।
 J.Pजैसेमहापुरुष इस,
धरती के संतान हुए ।
राजनितिक का यह है देश। 

देख के भारत की दुर्दशा,
मन का भाव छलक उठा,
आगे क्या मई लिखू कविता,
हृदय मेरा कांप गया,
राजनितिक का यह है देश,
समझो तुम गुलाम इसे।
                     संतोष कुमार 

प्यारी बोली 
कोयल की बोली है नयरी 
मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी 
कोयल यह सिखलाती है।
सबसे अच्छें स्वर में बोलो।
कभी किसी को बुरा न बोलों 
बोरा न देखो, बुरा न सुनो।
बस प्यारी-प्यारी वाणी बोलो।
                           संतोष कुमार 

Monday 30 July 2012

मेरी कबिताये 
चिड़िया की आवाज चूँ - चूँ 

चिड़ियाँ चूँ -चूँ  करती है।
दिन भर इधर से उधर भटकती है ।
अपने बच्चो की खातिर वह,
शिकारी के जाल  में भी फसती है ।
लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते है ,
तो छोड़ बसेरा उड़ जाते है।
उनको फिर क्या फिकर किसी का,
वे तो मतवाले है, उड़ते जाते आकाश में 
जितने ऊपर चाहते है।
लेकिन एक दिन एसा आता है। 
जब वे शिकारी के जाल में फंस जाते है।
और वे चूँ -चूँ  करते रह जाते है ।
                                                Santosh kumar

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